इस
चौपाई में राम नाम की अत्यंत महिमा बताई गयी है ! गोस्वामी के कहने का
अर्थ यह हुआ की जब राम जी अपने नाम की महिमा नहीं कह सकते तो में नाम की
महिमा कहाँ तक लिखूं ! रामजी अपने नाम की महिमा क्यों नहीं सकते इस पर मानस के टीकाकारो ने बहुत सुन्दर भाव लिखे हैं !
१) नाम की महिमा अनंत है
महिमा नाम रूप गुण गाथा ! सकल अमिट अनंत रघुनाथा!!
जिसका
अंत ही नहीं वह कैसे कही जा सकती है ! यदि कोई कहे की रामजी अपने नाम की
कह सकते हैं तो फिर " नाम की महिमा अनंत है " यह बात सिद्ध नहीं होगी !
२) अपने मुख अपने नाम की प्रभुता नहीं कह सकते
निज गुण श्रवण सुनत सकुचाही
जब अपने गुणों का श्रवण करने में ही सकुचाते हैं तो फिर अपने मुख से अपने नाम की महिमा कह ही नहीं सकते !
३)
रामजी धर्म के और वेदों की मर्यादा के रक्षक है ! वेद कहते हैं नाम की
महिमा अनंत है इसलिए राम जी वेद की मर्यादा तो न तोड़ेंगे !
४) कुछ संतों का मत है की रामजी अपने नाम के रस में स्वयं मस्त रहते हैं इसलिए अपने मुख से अपने नाम की महिमा नहीं कह सकते !
५ ) यदि श्रीराम जी कहना चाहे तो ऐसा कौन है जो नाम की सम्पूर्ण महिमा
सुनने के योग्य हो ! कोई योग्य पात्र नहीं है जो नाम की महिमा सुन सके
इसलिए नाम की सम्पूर्ण महिमा नहीं कहते !
६ ) गोस्वामीजी यहाँ
भगवान् की व्यंग्य स्तुति करके भगवान् को प्रसन कर रहे हैं ! जैसे कोई राजा
या किसी धनिक व्यक्ति से कहे आप तो बड़े कंजूस हैं पर आपके नाम से मैं
करोडो रुपये ला सकता हूँ
इससे वह धनिक व्यक्ति बुरा नहीं मानेगा बल्कि प्रसन्न हो जाएगा !
जय श्रीसीताराम
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