Friday 30 August 2013

श्री कृष्ण जन्म कथाः

श्री कृष्ण जन्म कथाः
द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसो के अत्याचार बढने लगे पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी क श्रीकृष्ण जन्म कथा
पाप यह भी बिल्कुल भी चिंतित था पृथ्वी भगवान पर काफी वृद्धि हुई है . ब्रह्मा के साथ साथ Dewatao सारी पृथ्वी , भगवान विष्णु लेटेक्स सागर लिया. बेड पर भगवान विष्णु नींद को अंतिम रूप दिया गया . मेरा उद्धार रहते हैं . " मैं नर, चिंता मत करो - - . . भगवान विष्णु ने कहा कि सुनने के लिए आश्वस्त है जबकि अवतार पृथ्वी पर आते हैं और यह मोक्ष प्रदान करेगा मथुरा में पैदा किया जा रहा मेरे अवतार कश्यप मुनि के अवतार लेने से पहले, वासुदेव जाना जाएगा मैं पत्नी हूँ वासुदेव और देवकी के ब्रज मंडल कृष्णा में गर्भ और उनकी दूसरी पत्नी की मेरी सवारी के गर्भ से जन्म लेने के रूप में बलराम Sheshnaag के रूप में उत्पन्न हो जाएगा . तुम सब देवताओं ब्रज यादव वंश उस में उसके शरीर धारण कर जमीन में चला गया . क्षेत्र में कुरुक्षेत्र पृथ्वी के क्षत्रियों पापी पापों की हत्या से मैं राहत मिली . " Antrdhyan तो कह रहे थे . फिर Gopio के रूप में पैदा हुए अवतार ब्रज मंडल यशोदा के देवता और नंद GOP आया .
समय भी जल्द ही आ गया है . में Dwapara युग के अंत में मथुरा Ugrasen Yyati राजवंश राजा राज्य करता रहा . संस , राजा कंस के ज्येष्ठ पुत्र Ugrasen था . देवकी उनके साथ पैदा हुआ था . देवकी के चचेरे भाई कंस के रूप में इस तरह पैदा हुआ था . कंस जबरन Ugrasen कैद सिंहासन से वंचित और राजा खुद राजा यहाँ पैदा हुए , कश्यप ऋषि वासुदेव के पुत्र Sursen में पैदा हुआ था, बन गया. साथ देवकी के बाद में एक शादी में यादव में वासुदेव ने निष्कर्ष निकाला है .

कंस देवकी बहुत स्नेह था . जब कंस देवकी आवाज स्वर्ग से आया है कि रथ के साथ दूर देने के लिए जा रहा था , "हे कंस ! बड़ा तु कि देवकी के आठवें पुत्र से रवाना प्यार तेरा यह कंस देवकी को मारने के लिए सुन संहार . आकाशवाणी होगा उद्धरण क्रोध से भर गया वह - . देवकी कौन होगा नहीं उनके बेटे .

घटना के चारों ओर एक सनसनी पैदा की . कई योद्धाओं वासुदेव को जवाब के लिए तैयार थे . वासुदेव के खिलाफ युद्ध नहीं चाहता था . वासुदेव और कंस की देवकी जी, आप देवकी ' करूँगा हाथ आप के आठवें पुत्र का कोई डर नहीं है कि समझाया . आप उसका गुस्सा शांत हो के साथ व्यवहार करने के लिए उन्हें समझाने के लिए सीएनएस को समझने के लिए आते हैं. वासुदेव झूठ नहीं बोला . जी कंस वासुदेव और देवकी , वासुदेव , उन्होंने स्वीकार किया और उन्हें जेल में डाल दिया और सख्त सुरक्षा लागू किया गया है .
जैसे ही वासुदेव और देवकी उसे सौंपी है उनके पहले बेटे कंस को जन्म दिया. कंस नीचे फेंक एक चट्टान से मार डाला. इस प्रकार एक - एक करके निर्दयतापूर्वक कंस , देवकी , सात छोटे बच्चों को मार डाला . पोस्ट भद्रा कृष्ण कृष्ण की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र ओर एक जेल सेल प्रसार प्रकाश में उसे जन्म , जन्म हुआ था . शंख , पहिया के सामने वासुदेव और देवकी , गदा , भगवान के रूप एव Pdmdhari चतुर्भुज खुद को प्रकट किया है और अब मैं ' अब आसानी से दो सुलभ और गोकुल में यहाँ मेरे लिए एक छोटी बहन बन करूँगा " , कहा - बस में जन्मी लड़की कंस प्रस्तुत लाया दो के लिए . वासुदेव जी Hthkdia ँ तुरंत खोला . वापस आ कंस की जेल में कृष्णा नंद Yashodaji Sunlakr लड़की . पूर्ववत् करने के लिए अगले यहां के लड़के को जेल के दरवाजे बंद थे . Hthkdia ँ कानून वासुदेव के हाथों में गिर गई , कंस Phredarjag पर सूचना मिली थी लड़की रो . जेल जाकर कंस लड़की को मारने की कोशिश की , लेकिन वह आकाश की देवी की कंस Cutkr फार्म का पत्थर हाथ पर धमाका कर सकते हैं , के ऊपर उड़ान और " हे कंस कहा ! मुझे क्या मारने के लिए? गोकुल की तेरा दुश्मन में metastasized " . कंस घटनास्थल पर हैरान और परेशान किया गया था . कंस कृष्ण कृष्ण कई राक्षस Datyo उसकी Alulik माया की सभी मारे गए . बड़े पैमाने पर कंस Ugrasen हत्या से सिंहासन को Accedes भेजा मारने के लिए . देश में सदाचार से कृष्णा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है जब तिथियों की . था सुनाने के लिए तथा उद्धार के लिए ब्रह्मा जी के पास गई . पृथ्वी पर पाप कर्म बहुत बढ़ गए यह देखकर सभी देवता भी बहुत चिंतित थे . ब्रह्मा जी सब देवताओ को साथ लेकर पृथ्वी को भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर ले गए उस समय भगवान विष्णु अन्नत शैया पर शयन कर रहे थे स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई भगवान ने ब्रह्मा जी एवं सब देवताओ को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली - . . भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ मेरा उद्धार किजिए यह सुनकर भगवान विष्णु उन्हें आश्वस्त करते हुए बोले - . . " चिंता न करें , मैं नर - . अवतार लेकर पृथ्वी पर आऊंगा और इसे पापों से मुक्ति प्रदान करूंगा मेरे अवतार लेने से पहले कश्यप मुनि मथुरा के यदुकुल में जन्म लेकर वसुदेव नाम से प्रसिद्ध होंगे . मैं ब्रज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से ' कृष्ण ' के रूप में जन्म लूँगा और उनकी दूसरी पत्नी के गर्भ से मेरी सवारी शेषनाग बलराम के रूप में उत्पन्न होंगे . तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण कर लो . कुरुक्षेत्र के मैदान में मैं पापी क्षत्रियों का संहार कर पृथ्वी को पापों से भारमुक्त करूंगा . " इतना कहकर अन्तर्ध्यान हो गए . इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा तथा गोप गोपियो के रूप में पैदा हुए .
वह समय भी जल्द ही आ गया . द्वापर युग के अन्त में मथुरा में ययाति वंश के राजा उग्रसेन राज्य करता था . राजा उग्रसेन के पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र कंस था . देवकी का जन्म उन्हीं के यहां हुआ . इस तरह देवकी का जन्म कंस की चचेरी बहन के रूप में हुआ . कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वंय राजा बन गया इधर कश्यप ऋषि का जन्म राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में हुआ . कालांतर में देवकी का विवाह यादव कुल में वसुदेव के साथ संपन्न हुआ .

कंस देवकी से बहुत स्नेह करता था . पर जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि " हे कंस ! जिस देवकी को तु बडे प्रेम से विदा करने कर रहा है उसका आँठवा पुत्र तेरा संहार करेगा . आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को उद्धत हो गया . उसने सोचा - ने देवकी होगी न उसका पुत्र होगा .

इस घटना से चारों तरफ हाहाकार मच गया . अनेक योद्धा वसुदेव का साथ देने के लिए तैयार हो गए . पर वसुदेव युद्ध नहीं चाहते थे . वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे देवकी से तो कोई भय नही है देवकी की आठवी सन्तान में तुम्हे सौप दूँगा . तुम्हारे समझ मे जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना उनके समझाने पर कंस का गुस्सा शांत हो गया . वसुदेव झूठ नहीं बोलते थे . कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली पर उसने वसुदेव और देवकी को कारागार में बन्द कर दिया और सख्त पहरा लगवा दिया .
तत्काल नारदजी वहाँ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चला कि आठवाँ गर्भ कौन सा होगा गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगा कंस ने नादरजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालको को मारने का निश्चय कर लिया . जैसे ही देवकी ने प्रथम पुत्र को जन्म दिया वसुदेव ने उसे कंस के हवाले कर दिया . कंस ने उसे चट्टान पर पटक कर मार डाला . इस प्रकार एक - एक करके कंस ने देवकी के सात बालको को निर्दयता पूर्वक मार डाला . भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उनके जन्म लेते ही जेल ही कोठरी में प्रकाश फैल गया . वासुदेव देवकी के सामने शंख , चक्र , गदा , एव पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा , " अब मै बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी - अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौप दो . तत्काल वासुदेव जी की हथकडियाँ खुल गई . दरवाजे अपने आप खुल गये पहरेदार सो गये वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणो को स्पर्श करने के लिए बढने लगी भगवान ने अपने पैर लटका दिए चरण छूने के बाद यमुना घट गई वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल मे सुंलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए . जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये . वासुदेव जी के हाथो में हथकडियाँ पड गई , पहरेदारजाग गये कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई . कंस ने कारागार मे जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथो से छूटकर आकाश में उड गई और देवी का रूप धारण का बोली , " हे कंस ! मुझे मारने से क्या लाभ ? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुच चुका है " . यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया . कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे श्रीकृष्ण ने अपनी आलौलिक माया से सारे दैत्यो को मार डाला . बडे होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया . श्रीकृष्ण की पुण्य तिथी को तभी से सारे देश में बडे हर्षोल्लास से मनाया जाता है .

Thursday 29 August 2013

Sri Krishna Birth STORY

Sri Krishna Birth STORY
Sin increased greatly on the earth god it was also concerned at all . Dewatao all the earth , along with Brahma , Lord Vishnu took the latex Sea . Lord Vishnu sleeping on the beds were finalized . Living my salvation . While assuring to hear that Lord Vishnu said - " Do not worry , I Male - Avatar come to Earth and it will provide salvation . Before taking my avatar Kashyap Muni 's incarnate being born in Mathura , Vasudeva will be known . All you gods Braj Yadav dynasty went into the ground holding his body in it. In the field of Kurukshetra Earth by killing the Kshatriyas sinner sins I 'm relieved . " Antrdhyan were saying so . Then came the incarnate god of Braj Mandal Yashoda and Nand gop born as Gopio .
The time has come too soon . At the end of Dwapara era in Mathura Ugrasen Yyati dynasty king reigned . Sons, the eldest son of King Kansa was Ugrasen . Devaki was born with them . Such as Devaki 's cousin Kansa was born . In a subsequent marriage of Devaki with Vasudeva in Yadav concluded .

Kamsa, Devaki was much affection . When Kamsa, Devaki was going to give away with the chariot that the voice came from heaven , " O Kansa ! The big love ye depart from that Devaki 's eighth son, thine it will self-destruct . AIR listening to kill Kamsa, Devaki quotes were filled with anger . He - not his son who will be Devaki .

The incident created a sensation around . Many warriors were ready to respond to Vasudeva . On Vasudev did not want war . Vasudeva and Devaki law of Kamsa, you explained that there is no fear of the eighth son of Devaki 'll hand you . You come to understand the CNS to explain them to behave with her anger subsides . Vasudeva did not lie . G Kansa Vasudeva and Devaki , Vasudeva , he admitted and put them in jail and has applied strict security .
As soon as Vasudeva and Devaki gave birth to their first son Kansa handed over to him . Kansa killed by a rock thrown down . Thus seriatim cruelly killed Kansa , Devaki, the seven little children . Ashtami Rohini Nakshatra side of the post Bhadra Krishna Krishna was born, born to him in a jail cell spread light . Vasudeva and Devaki in front of the conch , wheel , mace , Yew Pdmdhari quadrilateral as God manifested himself and said, "Now I 'll become a little sister to me here in Gokul readily accessible two and now - just -born girl brought Kansa submitted to two . Vasudeva G Hthkdia opened immediately .here 's the boy next to Krishna Nand Yashodaji Sunlakr girl in the prison of Kansa come back . Undo the prison doors were closed . Hthkdia fell into the hands of law Vasudeva , Kansa was reported on Phredarjag the girl cry . Prison visiting Kansa tried to kill the girl , but he can bang on the stone hands of Kansa Cutkr form of Goddess of the sky, flying over and said, " O Kansa ! What to kill me ? Gokul 's metastasized into thy enemy " . Kansa was shocked and distraught at the scene . Kansa to kill Krishna Krishna sent several monster Datyo killed all of his Alulik Maya . Accedes to the throne by killing Kansa Ugrasen at large . In the country by virtue of the dates when Krishna is celebrated with great enthusiasm .

Friday 23 August 2013

ओम नमः शिवाय

श्रावण मास। यानी भगवान शिव का मनपसंद समय। जब वे सुनते हैं भक्तों की फरियाद और कर देते हैं उन्हें खुश। कहा जाता है कि श्रावण मास में भगवान भोले किंचित मात्र पूजा से ही प्रसन्न हो जाते हैं और अपने भक्तों को दे देते हैं मनचाहा आशीर्वाद। यही कारण है कि श्रावण मास के नजदीक आते ही भोले भंडारी बन गए हैं भक्तांे के रखवाले। आइए आज हम भी आपको कराते हैं भगवान भोले के दर्शन। 

ओम नमः शिवाय- ओम नमः शिवाय- ओम नमः शिवाय। आप भी कर लिजिए भगवान शिव के दर्शन। धौलपुर जिले के चंबल नदी के बीहड़ों में विराजे भोले नाथ की अपनी महिमा है। अभी श्रावण मास के नजदीक आते ही यहां बढ़ गई है भक्तों की भीड़। बीहड़ों में स्थित अचलेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यहां कई किवदंतियां जुड़ी हुई है। भक्तांे के अनुसार ये मंदिर लगभग हजार साल पुराना है। हालांकि बीहड़ों में होने से यहां भक्तों का आना कम ही होता है लेकिन इसके बावजूद यहां श्रावण मास में भक्तों का मेला आम बात हो चुकी है। आखिर यहां गहरी आस्था रखने वाले भक्तों की हर मनोकामना को भगवान शिव पूरा भी तो करते हैं। तभी तो ना केवल धौलपुर बल्कि पूरे राजस्थान और यूपी एमपी के भक्त भी बाबा के द्वार पर मौजूद है
बुजूर्ग बताते हैं कि मंदिर के गर्भ गृह की खुदाई भक्तों ने की थी। लेकिन इसकी खुदाई जैसे जैसे गहरी होती गई, वैसे वैसे भोलेनाथ की चैड़ाई भी बढ़ती गई। खुदाई के साथ मूर्ति अष्टाकार हो गई, लेकिन इसका कोई अंत नहीं निकला। पिंडी को देखने से ये ज्योतिर्लिंग के रूप में है। साथ ही यहां भगवान भोले का चमत्कार ही है कि ये दिन में तीन बार अपना रंग भी बदल लेते हैं। सुबह इसकी आभा लाल रंग लिए होती है तो दोपहर में केसरिया हो जाती है। वही शाम को भगवान भोले सांवला रंग धारण कर लेते है।
यहाँ ऐसी मान्यता है कि कुंवारे लड़के-लड़कियाँ अगर शिवजी से अपनी शादी के लिए प्रार्थना करें तो उनकी शादी हो जाती है। मंदिर परिसर में पुराने समय की ही बनी गुफाएं भी है। कहा जाता है कि ये ही वो जगह है जहां साधु संत तपस्या किया करते थे। लेकिन आज इन गुफाओं का कोई उपयोग नहीं हो रहा। फिर भी भक्तों की इसमें असीम श्रद्धा है। आखिर यहां आकर मांगने मात्र से भक्तों को सब कुछ मिल जाता है।

Tuesday 20 August 2013

Total History of Raksha Bandhan

History of Raksha Bandhan

Love Raksha Bandhan? Find out about how it started and when the celebration of the festival began in this section that covers the History of Raksha Bandhan, popularly known as Rakhi.

Raksha Bandhan, like most other Indian festivals, finds its roots in the Hindu religious texts and mythological epics. Though the exact date or year about when the festival started is not known, there are many real as well as mythological stories that are credited for making the festival as important as it is today and can aptly be called its ‘history’.

Historically, wives used to tie a thread of protection on their husband’s wrist but this practice changed to sisters tying the thread of Rakhi on their brother’s wrist over time. The practice of a wife tying a thread of protection on her husband’s wrist finds its roots in a Hindu mythological tale of Lord Indra and his wife Indrani. It is believed that the deities and the demons were fighting a battle once on the day of Shravan Poornima (full moon day in the Hindu month of Shravan). The demons were in a winning position when compared to the deities. The king of the deities, Lord Indra, was quite worried on seeing this. His wife, Indrani prayed to God to help her husband and tied a thread (also called a talisman) around his right wrist to wish him good luck and help the deities win. The talisman would offer him protection too. After she did this, the tide turned in favor of the deities in the battle and they eventually won over the demons. The practice of wives tying a thread on their husband’s wrist that brought protection as well as good luck to the latter got established in this manner. The ceremony became popular as Raksha Bandhan and since the day Indrani tied it on Lord Indra’s wrist happened to be Shravan Poornima, Raksha Bandhan came to be celebrated on the day of Shravan Poornima every year.

Some people believe a tale from the Mahabharata, connected to the tale about Lord Indra and his wife, Indrani (also known as Shachee Devi, at times) is responsible for the setting up of the festival of Raksha Bandhan. According to the Mahabharata, the eldest of the Pandava brothers, the righteous Yudhishtra once asked Lord Krishna how he could protect himself from problems and disasters in the year ahead. Lord Krishna advised him to practice the ceremony of Rakshaa. He narrated the story of Lord Indra and how his wife practiced the ceremony of Rakshaa to ensure his protection. Yudhisthra was impressed with the story and practiced the ceremony to ensure that he remained protected from problems and bad luck in the future year. 


Historically speaking, it is believed that the Aryans practiced the ceremony of conducting yagnas (a ritual performed to invoke the Gods and seek their blessings) before going for fighting wars. Through yagnas, they sought protection through God’s blessings. Their wives tied a sacred thread on their wrist during these yagnas to protect them from harm and bring them victory in war. Again, we see that historically, the thread of protection was tied by the wife on the husband’s wrist. Over time, this practice transformed into sisters tying a thread on their brother’s wrist to bring them good luck and blessings on the festival of Raksha Bandhan.

In current times, we strictly know Raksha Bandhan as a festival that celebrates the bond between a brother and a sister but historically we see that, that was not the only relationship the festival was associated with.

Besides the various religious and mythological tales related to the history of Raksha Bandhan, there is a real-life historical incident that is associated with the history of the festival as well. The great poet, philosopher and writer, Rabindranath Tagore celebrated Raksha Bandhan in Bengal to bridge the growing divide between Hindus and Muslims. He could understand what the British were trying to do by creating misunderstanding between the two communities and he wanted to do the exact opposite by uniting them in a spirit of unity and brotherhood so the partition of Bengal could be avoided. Since Raksha Bandhan celebrates brotherhood, he celebrated it as a community festival so a spirit of communal harmony, unity and brotherhood could be created as well as established. Raksha Bandhan is celebrated in Bengal every year thanks to the initiative taken by Rabindranath Tagore in 1905.

The current nature of the festival and its celebration has acquired its various meanings and associations from several incidents and tales from the past. It is essentially a festival that revolves around the protective instinct that human beings (and many other mammals) have of protecting their loved ones from harm. Sisters pray for their brother’s well-being while brothers vow to protect their sisters for life.

Celebrate this beautiful festival of love and care with Gujaratgifts.com that has a dedicated section of Raksha Bandhan Gifts and thalis. Not only can brothers order attractive gifts for their sisters, sisters too can order traditional Rakhi Gifts that come with all the items that are required for the ceremony during the festival. From Sandalwood Rakhis to Golden and Silver plated Rakhis, the attractive range of Rakhis on the portal is quite comprehensive. Celebrate Raksha Bandhan in style with online gifts from Gujaratgifts.com!

Most Indian festivals have an important background that give it significance. Although there are modifications in the practices and celebrations which evolve over the years, there is still a very strong connection which can be made to its roots. It is the ancient relevance and the ability to connect with the past which makes every festival in India be celebrated with reverence, sincerity and dedication as much as with fun and joy. This is not something that you will find on just one particular occasion, but something that is common to every celebration and festival in India.

For the uninitiated, the festival of Raksha Bandhan, popularly known as Rakhi, came into being nearly 6000 years back, with the creation of Indus Valley Civilization. But as in the case of other festivals, there are many historical and mythological legends attached to the festival. Here we present a few extraordinary legends behind the festival. This is something that makes Rakhi truly magical. This is not a festival which has gained popularity merely for its tradition, but also for its rooted symbolisms which have been evolved from the early ages.

The phenomenon of Raksha Bandhan draws inspiration from historic and mythological legends equally. Here is why Raksha Bandhan has enjoyed importance over the centuries.

Rani Karnawati and Emperor Humayun
During the medieval times, it was a very well known fact that Muslim invaders attacked Rajput Kingdoms and even kidnapped their women.
When king of Gujarat Bahadur Shah attacked Chittor, the widowed queen Karnavati of this princely state beckoned Mughal emperor Humayun help by sending a bejeweled rakhi. Humayun obliged and immediately rushed his forces to his sister’s aid. Unfortunately, by the time the troops reached Chittor, the queen and thousands of other women had already committed Sati to save their honors.
Deep in sorrow the disheartened Humayun is said to have applied a pinch of ash from Karmawati's pyre on his forehead as a mark of affection and respect for the dead queen.

Although a story with a tragic end, this still shows a promise that gives every sister hope and faith in her brother and the bond that they share.
Alexander The Great and King Puru
Lore has it that when Alexander of Macedonia invaded Indian sub-continent in 300 B.C., he faced a tough opponent in the form of King Puru –the ruler of western India. The battle was so demoralizing for Alexander that finally his beloved had to do something about it. She sought an audience with King Puru and at once tied Rakhi to him. Puru in a brotherly gesture decided not to harm Alexander.

These are just some of the lessons from history that will make you find Raksha Bandhan more compelling. Mythological references to this festival are just as profound, and sure to make your faith in the celebration stronger.
Lord Krishna and Draupathi
To protect righteous people, the benevolent Lord Krishna killed the evil King Shishupal. Krishna hurt himself in the process and was left with a bleeding finger. Draupathi, immediately tore her Saree and tied it around Krishna’s wrist. The Lord moved by Draupathi’s gesture promised to repay her debt in the future. A few years later when Kauravas tried to disrobe Draupathi, Krishna saved her honor with his divine powers.

The powers of Lord Krishna are immense, and to be able to repose the same faith that Draupadi had for Krishna in your brother only shows the potential that this festival has in being able to bring you all together.
King Bali and Goddess Lakshmi
King Mahabali was a great devotee of Lord Vishnu. Overwhelmed by his deep devotion Lord Vishnu decides to take over the responsibilities of his Kingdom. However, for this, Vishnu had to leave his place in vaikuntam- much to the distress of Goddess Lakshmi - Lord Vishnu’s wife.  Lakshi not very happy with her husband’s decision, decides to take refuge in Bali’s Kingdom in order to get her husband back. Finally, on Shravana purnima, she manages to tie Rakhi on King Bali's wrist. Till then she hadn’t revealed herself to Bali. But on rakshabandhan Goddess Laxmi let know Bali of her reservations. The King was so touched by Laxmi and Vishnu’s goodwill that he begged Lord Vishnu to go back to vaikuntam. So this festival is also referred to as Baleva- Bali Raja's devotion to Lord Vishnu.
Yama and Yamuna

Yama and Yamuna add to the significance of Raksha Bandhan immensely. Yama gained immortality when his sister Yamuna tied him a rakhi. Completely taken in by the import of the gesture, Yama affirmed that anyone who stood by their promise to protect their sister when tied a rakhi would be blessed with life everlasting.
Such happenings over the centuries have strengthened the bonds of affection between brother and sister which in fact are reaffirmed every year on the day of Raksha Bandhan.

To bring to light the importance and magnitude of the festival of Raksha Bandhan, GujaratGifts.com has compiled a collection of the choicest Rakhi Gifts, including not just the conventional Rakhi Thalis and Raksha Bandhan gifts, but an array of exquisite selections that can articulate your emotions perfectly. These are not mere symbols of the festival, but also ways to help you reach out to your family, connect with them and also a means to get you all closer together. Enjoy the celebrations and strengthen the special bond forever.

Happy Raksha Bandhan

DID YOU KNOW- The History of Raksha Bandhan Festival!

 

The king of devils Bali was a great devotee of Lord Vishnu. One day Bali approached to Lord Vishnu for safeguarding his kingdom. Lord Vishnu took this task and decided to leave his heavenly home, but Goddess Laxmi wanted his husband not to leave his home. She reached to the house of Bali as a camouflaged Brahmin woman and asked for shelter.  
  

On Shravan Purnima day Laxmi Ji tied a sacred thread on the wrist of King Bali and revealed her purpose for being there. Touched by the concern of Laxmi Ji towards her family, King Bali requested Lord Vishnu to live with her. Therefore the Rakhi festival is also called 'Baleva' that means the devotion of King Bali to Lord Vishnu.

Me and my family wishes all of you a very Happy Rakshabandhan.

Monday 19 August 2013

वास्तु

वास्तु

घर में सुकून के लिए वास्तु                                 

वास्तु के अनुसार घर की सजावट करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-

1) घर के प्रवेश द्वार पर स्वस्तिक अथवा 'ॐ' की आकृति लगाने से घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
2) जिस भूखंड या मकान पर मंदिर की पीठ पड़ती है, वहाँ रहने वाले दिन-ब-दिन आर्थिक व शारीरिक परेशानियों में घिरते रहते है।
3) समृद्धि की प्राप्ति के लिए नार्थ-ईस्ट दिशा में पानी का कलश अवश्य रखना चाहिए।
4) घर में ऊर्जात्मक वातावरण बनाने में सूर्य की रोशनी का विशेष महत्व होता है इसलिए घर की आंतरिक साज-सज्जा ऐसी होनी चाहिए कि सूर्य की रोशनी घर में पर्याप्त रूप में प्रवेश करे।
5) घर में कलह अथवा अशांति का वातावरण हो तो ड्राइंग रूम में फूलों का गुलदस्ता रखना श्रेष्ठ होता है।
6) अशुद्ध वस्त्रों को घर के प्रवेश द्वार के मध्य में नहीं रखना चाहिए।
7) वास्तु के अनुसार रसोईघर में देवस्थान नहीं होना चाहिए।
8) गृहस्थ के बेडरूम में भगवान के चित्र अथवा धार्मिक महत्व की वस्तुएँ नहीं लगी होना चाहिए।
9) घर में देवस्थान की दीवार से शौचालय की दीवार का संपर्क नहीं होना चाहिए।

Saturday 17 August 2013

धन प्राप्ति के कुछ अचूक टोटके

धन प्राप्ति के कुछ अचूक टोटके

संसार में रहकर गृहस्थ जीवन की सफलता के लिए सुख-समृद्धि का होना निहायत ही जरूरी है। धन-समृद्धि को अर्जित करने के लिए प्रबल पुरुषार्थ यानि कि ईमानदारी पूर्वक कठोर परिश्रम तो आवश्यक है ही। किंतु साथ ही कुछ जांचे-परखे और कारगर उपायों जिन्हें टोने-टोटके के रूप में जाना जाता है को भी आजमाना चाहिये। तो देखें ऐसे ही कुछ आसान किंतु प्रभावशाली टोटके को:

1. हर पूर्णिमा को सुबह पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाएं।
2. तुलसी के पौधे पर गुरुवार को पानी में थोड़ा दूध डालकर चढ़ाएं।
3. यदि आपको बरगद के पेड़ के नीचे कोई छोटा पौधा उगा हुआ नजर आ जाए तो उसे उखाड़कर अपने घर में लगा दें।
4. गूलर की जड़ को कपड़े में बांधकर उसे ताबीज में डालकर बाजु पर बांधे।
5. पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े होकर लोहे के पात्र में पानी लेकर उसमें दूध मिलाकर उसे पीपल की जड़ में डालने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और घर में लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है।
6. धन समृद्धि की देवी लक्ष्मी को प्रति एकादशी के दिन नौ बत्तियों वाला शुद्ध घी का दीपक लगाएं।
7. घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर तांबे के सिक्के को लाल रंग के नवीन वस्त्र में बांधने से घर में धन, समृद्धि का आगमन होता है।
8. शनिवार के दिन कृष्ण वर्ण के पशुओं को रोटी खिलाएं.

भगवान विष्णु

भगवान विष्णु / God Vishnu

भगवान विष्णु
God Vishnu
  • सर्वव्यापक परमात्मा ही भगवान श्री विष्णु हैं। यह सम्पूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है। वे निर्गुण भी हैं और सगुण भी।
  • वे अपने चार हाथों में क्रमश: शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं।
  • जो किरीट और कुण्डलों से विभूषित, पीताम्बरधारी, वनमाला तथा कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, सुन्दर कमलों के समान नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु का ध्यान करता है वह भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है।
  • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड में वर्णन है कि भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं। वे ही ब्रह्मा और शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। जहाँ ब्रह्मा को विश्व का सृजन करने वाला माना जाता है वहीं शिव को संहारक माना गया है। विष्णु की सहचारिणी लक्ष्मी है ।
  • वे ही नारायण, वासुदेव, परमात्मा, अच्युत, कृष्ण, शाश्वत, शिव, ईश्वर तथा हिरण्यगर्भ आदि अनेक नामों से पुकारे जाते हैं। नर अर्थात जीवों के समुदाय को नार कहते हैं।
  • सम्पूर्ण जीवों के आश्रय होने के कारण भगवान श्री विष्णु ही नारायण कहे जाते हैं।
  • कल्प के प्रारम्भ में एकमात्र सर्वव्यापी भगवान नारायण ही थे। वे ही सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करके सबका पालन करते हैं और अन्त में सबका संहार करते हैं। इसलिये भगवान श्री विष्णु का नाम हरि है। मत्स्य, कूर्म, वाराह, वामन, हयग्रीव तथा श्रीराम-कृष्ण आदि भगवान श्री विष्णु के ही अवतार हैं।
  • भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु हैं। वे अकारण ही जीवों पर करुणा-वृष्टि करते हैं। उनकी शरण में जाने पर परम कल्याण हो जाता है।
  • जो भक्त भगवान श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, उनके अर्चाविग्रह का दर्शन, वन्दन, गुणों का श्रवण और उनका पूजन करता है, उसके सभी पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।
  • यद्यपि भगवान विष्णु के अनन्त गुण हैं, तथापि उनमें भक्त वत्सलता का गुण सर्वोपरि है। चारों प्रकार के भक्त जिस भावना से उनकी उपासना करते हैं, वे उनकी उस भावना को परिपूर्ण करते हैं।
  • ध्रुव, प्रह्लाद, अजामिल, द्रौपदी, गणिका आदि अनेक भक्तों का उनकी कृपा से उद्धार हुआ।
  • भक्त वत्सल भगवान को भक्तों का कल्याण करनें में यदि विलम्ब हो जाय तो भगवान उसे अपनी भूल मानते हैं और उसके लिये क्षमा-याचना करते हैं। धन्य है उनकी भक्त वत्सलता।
  • मत्स्य, कूर्म, वाराह, श्री राम, श्री कृष्ण आदि अवतारों की कथाओं में भगवान श्री विष्णु की भक्त वत्सलता के अनेक आख्यान आये हैं। ये जीवों के कल्याण के लिये अनेक रूप धारण करते हैं।
  • वेदों में इन्हीं भगवान श्री विष्णु की अनन्त महिमा का गान किया गया है।
  • विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वर्णन मिलता है कि लवण समुद्र के मध्य में विष्णु लोक अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है। उसमें भगवान श्री विष्णु वर्षा ऋतु के चार मासों में लक्ष्मी द्वारा सेवित होकर शेषशय्या पर शयन करते हैं।
  • पद्म पुराण के उत्तरखण्ड के 228वें अध्याय में भगवान विष्णु के निवास का वर्णन है।
  • वैकुण्ठ धाम के अन्तर्गत अयोध्यापुरी में एक दिव्य मण्डप है। मण्डप के मध्य भाग में रमणीय सिंहासन है। वेदमय धर्मादि देवता उस सिंहासन को नित्य घेरे रहते हैं। धर्म, ज्ञान, ऐश्वर्य, वैराग्य सभी वहाँ उपस्थित रहते हैं। मण्डप के मध्यभाग में अग्नि, सूर्य और चंद्रमा रहते है। कूर्म, नागराज तथा सम्पूर्ण वेद वहाँ पीठ रूप धारण करके उपस्थित रहते हैं। सिंहासन के मध्य में अष्टदल कमल है; जिस पर देवताओं के स्वामी परम पुरुष भगवान श्री विष्णु लक्ष्मी के साथ विराजमान रहते हैं।
  • भक्त वत्सल भगवान श्री विष्णु की प्रसन्नता के लिये जप का प्रमुख मन्त्र- ॐ नमो नारायणाय तथा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय है।