Sunday, 29 September 2013

ओम नमः शिवाय

ओम नमः शिवाय भी पांच अक्षर मंत्र के रूप में जाना जाता है महान मुक्ति मंत्र के रूप में जाना जाता है
अर्थ:
यह ' मैं शिव के धनुष मतलब है. " शिव सर्वोच्च वास्तविकता , भीतरी स्व है . यह सब में बसता है कि चेतना को दिया नाम है . शिव अपनी असली पहचान , अपने स्वयं के नाम है .
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस सृष्टि चलाने वाले तीन देवताओं हैं. ब्रह्मा - यूनिवर्स और शिव जो अंत में ब्रह्मांड को नष्ट कर देता बरकरार रखता है - जो ब्रह्मांड , विष्णु बनाता है . तीन देवताओं के अलावा, शिव , हालांकि विध्वंसक रूप में माना जाता है, भी प्रतीक है - यहां तक ​​कि सब कुछ समाप्त होने के बाद भी बरकरार है जो भीतर के स्व .
शिव अपने सच्चे आत्म करने के लिए इस मंत्र में गायक ( मंत्र को दोहराता है , जो एक) धनुष .              ओम नमः शिवाय एक बहुत शक्तिशाली मंत्र है . यह इस मंत्र आपके दिल में लगातार कंपन करती है, तो आप कोई ध्यान करना , तपस्या प्रदर्शन करने की जरूरत है , या योग का अभ्यास करने के लिए कि इस मंत्र के बारे में कहा गया है . आप कोई अनुष्ठान या समारोह की जरूरत है , और न ही आप एक शुभ समय में या एक विशेष जगह में यह दोहराना होगा . "यह मंत्र सभी प्रतिबंधों से मुक्त है . यह युवा या पुराने , अमीर या गरीब किसी भी व्यक्ति द्वारा दोहराया जा सकता है इस मंत्र को दोहराने और करने के लिए क्या राज्य के एक व्यक्ति में है , कोई बात नहीं यह उसे शुद्ध होगा .
'ओम नमः शिवाय ' दोहराने के लिए कैसे
एक सहज और शांत जगह है और स्थिति में बैठें. आप बात के रूप में एक ही गति के साथ अपने मन में या जोर से मंत्र दोहरा शुरू करें:
 ओम नमः शिवाय ( ओम् अंक हा शि क्यों )
 अपने भीतर का सच खुद - आप शिव को प्रणाम कर रहे हैं कि भावना के साथ , 'ओम नमः शिवाय ' दोहराएँ . सम्मान के साथ इस मंत्र को दोहराएँ. भीतर के स्व आप में भगवान का रूप है . आप 'ओम नमः शिवाय ' यानी ' मैं शिव ' के लिए धनुष कहते हैं तो जैसा ; . आप वास्तव में भगवान को प्रणाम कर रहे हैं - महान सर्वशक्तिमान ईश्वर के नाम की पुनरावृत्ति उसकी बहुत होने में मर्ज किए जाने के बराबर है तुम भगवान के नाम को दोहराना है. आपके मुंह में , एक तरह से , तुम भगवान ही अनुभव. बस विश्वास के साथ इस मंत्र को दोहराने और यह ध्वन्यात्मक कंपन आप के लिए चमत्कार कर रही शुरू होगा शक्तिशाली है .

Thursday, 26 September 2013

श्री राम नाम की महिमा

श्री राम नाम की महिमा

एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से श्री हरि की आराधना के बारे में पूछा तो भगवान शिव ने उनको भगवान श्री विष्णु की श्रेष्ठ आराधना, नित्य-नैमित्तिक कृत्य तथा भगवत्भक्तों की पूजा का वर्णन किया। जिसे सुन कर पार्वती जी ने कहा - नाथ ! आपने उत्तम वैष्णव धर्म का भलीभाँति वर्णन किया। वास्तव में परमात्मा श्री विष्णु का स्वरूप गोपनीय से भी अत्यन्त गोपनीय है। सर्वदेव वन्दित महेश्वर ! मैं आपके प्रसाद से धन्य और कृतकृत्य हो गयी। अब मैं भी सनातन देव श्री हरि का पूजन करूँगी।
श्री महादेव जी बोले - देवी ! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा ! तुम सम्पूर्ण इन्द्रियों के स्वामी भगवान लक्ष्मीपति का पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम-जैसी वैष्णवी पत्नी को पाकर अपने को कृतकृत्य मानता हूँ।
वसिष्ठजी कहते है - तदनन्तर महादेव जी से उपदेशानुसार पार्वती जी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करने लगीं। एक दिन परम मनोहर कैलास शिखर पर भगवान श्री विष्णु की आराधना करके भगवान शंकर ने पार्वतीदेवी को अपने साथ भोजन करने के लिये बुलाया। तब पार्वति देवी ने कहा - "प्रभो ! मैं श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करने के पश्चात भोजन करूँगी, तब तक आप भोजन कर लें" यह सुन कर महादेव जी ने हँसते हुए कहा - "पार्वती ! तुम धन्य हो, पुण्यात्मा हो ; क्योकि भगवान श्रीविष्णु में तुम्हारी भक्ति है। देवि ! भाग्य के बिना भगवान श्रीविष्णु की भक्ति प्राप्त होना बहुत कठिन है। सुमुखि ! मैं तो "राम ! राम ! राम !" इस प्रकार जप करते हुये परम मनोहर श्रीराम नाम में ही निरन्तर रमण किया करता हूँ । राम-नाम सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के समान है। पार्वती ! रकारादि जितने नाम हैं, उन्हें सुनकर रामनाम ही आशंका से मेरा मन प्रसन्न हो जाता है।

श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्त्रनाम ततुल्यं रामनाम वरानने ॥
रकारादीनि नामानि श्रृण्वतो म्म पार्वति । मनः प्रसप्रतां याति रामनामाभिशंकया ॥ (२८१ । २१-२२)

अतः महादेवि ! तुम राम-नाम का उच्चारण करके इस समय मेरे साथ भोजन करों ।" यह सुन कर पार्वती जी ने राम-नाम का उच्चारण करके भगवान शंकर के साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद उन्होने प्रसन्नचित होकर पूछा - ‘ देवेश्वर ! आपने राम-नाम को सम्पूर्ण सहस्त्रनाम के तुल्य बतलाया है यह सुन कर राम-नाम में मेरी बडी भक्ति हो गयी हैं अतः भगवान श्री राम के यदि और भी नाम हों तो बताइयें।’
श्री महादेव जी बोले - "पार्वती ! सुनो, मैं श्रीरामचन्द्र जी के नामों का वर्णन करता हूँ। लौकिक और वैदिक जितने भी शब्द हैं, वे सब श्रीरामचन्द्रजी के ही नाम हैं। किन्तु सहस्त्रनाम उन सबमें अधिक है और उन सहस्त्रनामों में भी श्रीराम के एक सौ आठ नामों की प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णु का एक-एक नाम ही सब वेदों से अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामों के समान अकेला श्रीराम-नाम माना गया है। पार्वती ! जो सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदों का जप करता है, उसकी अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नाम से उपलब्ध होता है।"

 
         


 राम नाम जाप से ही सभी कष्टों से मुक्ति
बहादुरगढ [जागरण संवाद केंद्र]। स्थानीय वेदान्त आश्रम में श्रद्धालुओं को प्रवचन सुनाते हुए स्वामी देवेंद्रानन्दगिरी ने कहा कि राम नाम ही चंद्रमा है, राम नाम ही सूर्य है, राम नाम ही अग्नि है और राम नाम ही मनुष्य को इस जीवन रूपी भव सागर से पार उतार सकता है।
स्वामी जी ने राम नाम की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस कलियुग में राम नाम ही सुख शांति का मार्ग है और राम नाम ही इस जीवन रूपी सागर से पार उतार सकता है क्योंकि श्वास कब पूरे हो जाएं यह कोई नहीं जानता इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सच्चे मन से राम नाम का जाप करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में सबरी,गिद्धव अजामिलका राम नाम ने ही उद्धार किया था और काग से कोयल बनाने की क्षमता भी राम नाम में ही है। महंत जी ने कहा कि पानी को मथानी से चलाने पर भले ही घी निकल आए, बालू के मशीन में डालने से भले ही तेल प्राप्त हो जाए और कोई भी असंभव कार्य भले ही संभव हो जाए लेकिन राम नाम के संकीर्तन बिना जीवन रूपी भवसागर से पार नहीं उतरा जा सकता।
उन्होंने कहा कि राम नाम की भक्ति की प्राप्ति सत्संग के बिना और सत्संग की प्राप्ति श्रीराम की कृपा के बिना नहीं हो सकती और प्राचीन काल में ऋषि, मुनियों ने भी राम नाम की महिमा का गुणगान किया है। उन्होंने कहा कि राम नाम का जाप मनुष्य को सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति दिला सकता है क्योंकि राम नाम में वो अपार शक्ति है जिसका कोई अनुमान नही है।
उन्होंने कहा कि संकीर्तन करके भगवान को रिझाने की परम्परा इसी काल से शुरू हुई थी जो कि आज भगवान को प्राप्त करने का सबसे उत्तम रास्ता है। उन्होंने कहा कि प्यार किया नहीं जाता हो जाता है। प्यार की आसक्ति,भगवान के चरणों में लगाई जाए तो मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

   

Sunday, 22 September 2013

भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि



भगवान शिव की पूजा और पूजा विधि

भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।
भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।


भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
ऊं नमः शिवाय
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-
ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं
भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅूं, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें'' इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणं बाणो,
बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं भूतो भविष्यति
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग तो बना है और ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा
भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों की मनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों के कष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समय सारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिव के हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजता से सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपने कण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक' अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथा शिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ से शिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समय निकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर का दाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली रही है इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिए शिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल या दूध चढाता है शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक ÷धारा' कहलाता है जल तथा दूध की धारा भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन कारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धारा का अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय के दूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेक करना चाहिये
हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजन क्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससे पूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वह हैः-
1 ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः
ऊं नमः शंभवाय मयोभवाय नमः शंकराय, मयस्कराय नमः शिवाय शिवतराय च।
इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारा तथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जा सकता है इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हैं पंचाक्षरी मंत्र का तात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र
विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों की धाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है तंत्र में सकाम अर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिए विशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-
सहस्रधाराः-
जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है
घी
की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है
दूध
की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए
दूध
में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकास होता है
गंगाजल
की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है
सरसों
के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है
सुगंधित
द्रव्यों यथा इत्र
, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविध भोगों की प्राप्ति होती है
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं, जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-
सहस्राभिषेक
एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है
एक
हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है
एक
हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धि बढती है
एक
हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है
एक
हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति विष्णुकृपा प्राप्त होती है
एक
हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है
एक
हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है
लक्षाभिषेक
एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है
एक
लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है
एक
लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है
एक
लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है
एक
लाख तुलसीदल चढाने से भोग मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है
एक
लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है
बेलपत्र
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने का भी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हे एक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटे पत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकने भाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है।इसके लिये जिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम त्रिधायुधम।
त्रिजन्म
पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥
उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र को समर्पित करना चाहिए
शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता
पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथा पूजन अधूरा रह जायेगा।
रुद्राक्ष
की माला हो तो धारण करें।
भस्म
से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
शिवलिंग
पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता
, सामने रखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
शिवमंदिर
की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा
तथा चम्पा के फूल चढायें।
पूजन
काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।
शिव को प्रसन्न करने के आसान उपाय

भगवान शिव को आशुतोष (तत्काल प्रसन्न होने वाले) कहा गया है। वे जल व बिल्वपत्र से ही प्रसन्न होने वाले देवता हैं। शिव महापुराण में कहा गया है कि -

त्रि दलम्‌ त्रि गुणाकारम्‌, त्रि नेत्रम्‌ च त्रयायुधम्‌।
त्रि जन्म पाप संहारम्‌, एक बिल्व शिर्वापणम्
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अर्थात् - तीन दलों (पत्तियों) से युक्त एक बिल्वपत्र जो हम शिव को अर्पण करते हैं, वह हमारे तीन जन्मों के पापों का नाश करता है तथा त्रिगुणात्मक शिव की कृपा भौतिक संसाधनों से युक्त होती है। अत: श्रावण मास में भगवान भोले को इनके अर्पण करने से अधिक फल प्राप्त होता है।

श्रावण माह के अंतर्गत प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है। जिसमें :-

* प्रथम सोमवार को कच्चे चावल एक मुट्ठी चढ़ाना शुभ होता है।
* दूसरे सोमवार को सफेद तिल्ली एक मुट्ठी चढ़ाया जाता है।
* तीसरे सोमवार को खड़े मूंग की एक मुट्ठी चढ़ाना चाहिए।
* चौथे सोमवार को जौ एक मुट्ठी चढ़ाने का महत्व है।
* ...और श्रावण मास में अगर पांचवां सोमवार भी आ जाता है, तो सतुआ चढ़ाने का महत्व हैं।

भगवान शिव का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है।